Tuesday, September 30, 2008

"और एक सुबह "

सुबह उठते ही,
याद उसकी घेर लेती है मुझे,
भर जाता है दामन,
मेरा खुशियों के मोती से.

एक उम्मीद ,एक नशा
एक ख्वाब मरीचिका-सा,
और मैं कस्तूरी हिरन
जीती हूँ उसमे,
उन वाष्पित क्षणों को
यादों में संजोये.

उन पलों की
खुशियों को फिर से जगाने,
काश से शुरू होती है
मेरी हर सुबह,
बलवती होती
मिलन की अभिलाषा,
और उमीदों का दामन थामे,
तय करती हूँ मैं
अपना एक और दिन,
सोचती हूँ
कभी तो आएगा
वो मेरा प्रीतम...

नीलिमा