Wednesday, November 12, 2008

हर गुजरती शाम के साथ...

चकित
विस्मित
भ्रमित
हो जाती हूँ मैं
देखकर अपने मोहन का
नया रूप हर दिन!!!

सोचती हूँ
कैसे होते मेरे दिन
अगर ना मिलता मुझे
साथ मेरे मोहन का?

जाते हर लम्हे के
संग बढ़ता जाता है
ये सम्मोहन
मिलने बिछड़ने का
ये अद्भुत अनोखा चक्र.

उम्मीद
नाउम्मीदी
के बीच
पसरी हुई
एक ज़िन्दगी

बदलती तस्वीर
हर सुबह के साथ

लेकिन बढता ही
जाता है
मेरा प्यार
अपने मोहन के लिए
हर गुजरती शाम
के साथ...

5 comments:

डाॅ रामजी गिरि said...

हर उतरती शाम का मतलब रात के लिए आमंत्रण नहीं होता , उसपार इंतजार में सुलगती प्राची के लिए शीतल आश्वासन भी होता है ....

आपकी रचना में भी कुछ ऐसी ही बयार का अहसास हुआ..

36solutions said...

सुन्‍दर भाव ...... धन्‍यवाद ।

AshishGLC said...

again a wonderful expression of ideas..although this seems to be little less rhyming but its really good..the expressions are too good...keep it up..

Girish Kumar Billore said...

sahaj bhav sundar rachana
sadar

tarun said...

Hi neelima,
bahut hi saral aur bhal purn kavita hai ..
keep writing. I like your poems.

-tarun