Thursday, June 24, 2010

जीवन

समय बीतता जाता है,
लोग बदलते रहते है,
नहीं बदलता,
वो जीवन है.

खुशियाँ और गम
दो पहलु है
जीवन रुपी सिक्के के.

विचलित ना हो
समय के फेर से
ऐसा नहीं मानव
इस धरा पर.

फिर भी
जिसने ढाल लिया
अपने को
जीने की कला में,
उसका जीवन ही जीवन है.

नीलिमा

Thursday, March 18, 2010

ज़िन्दगी का सफ़र...

ज़िन्दगी एक लम्बा सफ़र है,
यहाँ हर मुसाफिर एक दुसरे से अलग है,
फिर भी कुछ तो ऐसा है
जो सबको इश्वर से जोड़ता है...

मिल जाते है अनजाने लोग,
जुड़ जाते है दिल के रिश्ते,
उम्र भर निभाने का वादा करके,
कुछ फिर अनजाने हो जाते है...

लेकिन कुछ मुसाफिर ऐसे भी होते है,
दिल को सहेजते है अपना समझकर,
प्यार भरे उस एक रिश्ते को,
जीवन की डोर से बांधकर,
निभाते है अपनी अंतिम सांस तक...

नीलिमा

Tuesday, April 7, 2009

यादों का संसार!!!

यादें
ख़ुशी और गम में
कहाँ फ़र्क कर पाती है.
जब तुम्हे यादों में पाती हूँ
दुनिया भूल जाती हूँ.
संग तुम्हारे हजारों सपने
आँखों में सजा लेती हूँ
तुम्हारे संग बिताया
हर एक लम्हा
यादों में बसा है
जैसे साँसों में बसा
हो जीवन...
तुमसे मिलकर
जाना मैंने क्या होता है
दिलों का धडकना
समझा मैंने किसे
कहते है समर्पण.
आभारी हूँ तुम्हारी
जताया अपना प्यार
बनाया मुझे अपना
और पनपने दिया हमारी
यादों का संसार...

नीलिमा

Tuesday, January 6, 2009

मेरी उड़ान

सोचती हूँ
मैं भी
उड़कर देखूं
उस नील गगन में
उम्मीद के पंख
लगाकर
सुनहरे सपने
आँखों में सजाये
क्या तुम
दोगे साथ मेरा
उस उड़ान में....

Saturday, November 29, 2008

मेरा शीशमहल

कांच का महल एक
सजाया था मैंने,
उमीदों के पंख लगा कर
करती रही सवारी
उस नीलगगन की.

बस एक
यथार्थ के झोंके ने
तोड़ दिया
मेरा शीश महल.

कैसे गयी थी मैं भूल,
एक लड़की को
नहीं आज़ादी
अपने लिए
कुछ सोचने समझने की,
क्यूँ नहीं था
याद मुझे
कितना जरुरी है
बने रहना धरातल पे.

गलती थी मेरी
शायद!
इसीलिए भोग रही हूँ
इस पीडा को,
सपनों के शीश महल के
अवशेष खोज रही हूँ
तस्वीरों में.

इतना सब
होने पर भी
सपने तो पीछा
नहीं छोड़ते
उमीदों भरे बादल
उस गगन का
आँचल नहीं छोड़ते...

नीलिमा

Wednesday, November 12, 2008

हर गुजरती शाम के साथ...

चकित
विस्मित
भ्रमित
हो जाती हूँ मैं
देखकर अपने मोहन का
नया रूप हर दिन!!!

सोचती हूँ
कैसे होते मेरे दिन
अगर ना मिलता मुझे
साथ मेरे मोहन का?

जाते हर लम्हे के
संग बढ़ता जाता है
ये सम्मोहन
मिलने बिछड़ने का
ये अद्भुत अनोखा चक्र.

उम्मीद
नाउम्मीदी
के बीच
पसरी हुई
एक ज़िन्दगी

बदलती तस्वीर
हर सुबह के साथ

लेकिन बढता ही
जाता है
मेरा प्यार
अपने मोहन के लिए
हर गुजरती शाम
के साथ...

Tuesday, September 30, 2008

"और एक सुबह "

सुबह उठते ही,
याद उसकी घेर लेती है मुझे,
भर जाता है दामन,
मेरा खुशियों के मोती से.

एक उम्मीद ,एक नशा
एक ख्वाब मरीचिका-सा,
और मैं कस्तूरी हिरन
जीती हूँ उसमे,
उन वाष्पित क्षणों को
यादों में संजोये.

उन पलों की
खुशियों को फिर से जगाने,
काश से शुरू होती है
मेरी हर सुबह,
बलवती होती
मिलन की अभिलाषा,
और उमीदों का दामन थामे,
तय करती हूँ मैं
अपना एक और दिन,
सोचती हूँ
कभी तो आएगा
वो मेरा प्रीतम...

नीलिमा