बेटियाँ को क्यूँ ऐसा बनाया विधाता तूने,
जहाँ जाती है दुनिया रंगीन बनाती है,
बचपन मे बाबुल के आँगन की रौनक,
जवानी मे साजन के घर की इबारत,
और बुढ़ापे मे बच्चों के जीवन का आधार.
इतना सहनशील क्यूँ बनाया बेटियाँ को विधाता तूने,
सहती है सारी बंदिशे- परिवार की रंजिशे;
उमीद की जाती है सारा बोझ उठाने की,
फुर्सत नही दी जाती है उन्हे उफ़ तक करने की,
इस पर भी मॅन नही भरा विधाता तेरा,
जो बनाया बेटियाँ को बेटियो का दुश्मन तूने???
Tuesday, March 4, 2008
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