रात भर अपने चाँद
की पहरेदारी करती रही,
रात भर अपने चाँद को ,
चान्दनियों मे खोजती रही.
इस उमीद मे बैठी रही की,
सुबह होते ही,
छूट ना जाए तेरा साथ.
बस अगर चलता मेरा ,
रोक देती सारी कायानत,
और बनी रह जाती,
सारी उमर तेरे साथ.
वक़्त था भागा जा रहा उस रात,
हवा के झोंके सा सुखद एहसास ,
उमीद का दामन छूटा जा रहा था .
बस अगर चलता मेरा,
उस पल मे जी लेती ज़िंदगी सारी,
और चल देती संग तेरे साँसे मेरी...
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7 comments:
" बस अगर चलता मेरा ,
रोक देती सारी कायानत, "
बहुत शिद्दत से लिखी गयी लगती है ये पंक्तियाँ...
"बस अगर चलता मेरा,
उस पल मे जी लेती ज़िंदगी सारी,
और चल देती संग तेरे साँसे मेरी..."
खूबसूरत अमूर्त समर्पण परिलक्षित है इस पल में , जैसे निशा उद्विग्न हो भोर के उस पल के गुजर जाने से जहाँ उसका मिलन होता है कुछ वाष्पित क्षणों के लिए अपने रवि से.
इस उद्विग्नता और समर्पण का सहज और प्रभावी निरूपण है आपकी रचना में.
agar aor bandishe na maan kar aor khula ho ke likhti to shaayad aor khoobsurat ho jati.....
shuraat behad khoobsurat hai.
bahut masoom see lagee kavita seedhe jo dil ko chhoo sake
Anil masoomshayer
shayarfamily.com
very good
hiii, neelima, you r the best writer..and there is no word to express......
u know now u r my favourite writer neelu....keep it up baby...realy nice this one too.....
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